शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

शारीरिक व मानसिक चुनौतियों से जूझ रहे लोगों पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम

संभव 2009



शारीरिक व मानसिक चुनौतियों से जूझ रहे लोगों पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम

शारीरिक व मानसिक चुनौतियां झेल रहे बच्चों व उन के लिए काम कर रही संस्थाओं व लोगों के लिए नवंबर 2009 की 14 व 15 तारीखें खास हैं।

सालों से ऐसे लोगों के बीच काम कर रही संस्था ‘‘अल्पना‘‘ ‘एसोसिएशन फार लर्निंग परफार्मिंग आटर्स एंड नारमेटिव एक्शन‘ ने ‘संभव 2009‘ के तहत 14 व 15 नवंबर को पूरे दिन अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झड़ी लगा दी है. विस्तृत कार्यक्रम यों हैः

14 व 15 नवंबर २००९

स्थानः मेन आडिटोरियम, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, मैक्स मुलर मार्ग, नई दिल्ली-३
समयः प्रातः ९.३० से प्रतिदिन
मुख्य अतिथिः श्री जयराम रमेश (केंद्रिय राज्य मंत्री, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार।)
प्रतिभागी देशः भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, भुटान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, कम्बोडिया, मलेशिया,
थाईलैंड, मोरिशस, नाइजीरिया.

अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक संध्या

14 नवंबर

स्थान: फिक्की आडिटोरियम, तानसेन मार्ग, नई दिल्ली - २
समयः सांय 6।00 बजे से।
प्रतिभागी देश: भारत ( अल्पना- नार्थ इंडियन ग्रुप, नार्थ ईस्ट इंडिया ग्रुप, ईस्ट इंडिया ग्रुप),
अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, थाइलैंड, बांग्लादेश।
मुख्य अतिथिः श्री मुकुल वासनिक,
केंद्रिय मंत्री, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता.
15 नवंबर
स्थान: स्टेन आडिटोरियम, हैबिटेट सेंटर, लोदी एस्टेट्स, नई दिल्ली-३
समयः सांय ६ ।00 बजे से.
प्रतिभागी देश: भारत (अल्पना- नार्थ इंडिया ग्रुप, वेस्ट इंडिया ग्रुप, साउथ इंडिया ग्रुप), नाइजीरिया,
मारिशस, भूटान , श्रीलंका, मलेशिया।
मुख्य अतिथिः श्रीमती गुरशरण कौर (प्रधानमंत्री डा.
मनमोहन सिंह की धर्मपत्नी, चर्चित समाजसेवी।)
विशिष्ट अतिथिः श्रीमती निरूपमा
राव (विदेश सचिव, भारत सरकार)
अध्यक्षताः श्री शेवांग फुनसांग (चैयरमैन, पब्लिक
इंटरप्राइजेज सलेक्शन बोर्ड.)

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

यह पीड़ामयी बयार

बह चली है कैसी,
पीड़ामयी यह बयार,
जो बुनती रहती है,
विपुल क्रन्दन अपार,
अनायास ही दे जाती है
अनचाहे मुझको
अश्रु उत्स उधार,
प्रणय का तुम्हारा चुंबन
मेरी स्मृति बराए जूं आहार,
हाय, नेस्ती छाई है
बन जीवन विहास.
उसकी वाय में घुलना तुम्हारा
ए मेरे अवरुद्ध श्वास,
आज भी दे रहा है मुझे
वही मिश्रित सा अहसास।
तुम ही कहो अब
प्रयण का वह पल,
कैसे भूलूं मैं
बन पलाश.
देखो तो,
तुम्हारा वह भोगी स्पर्श,
नित करता है मुझसे अट्टहास।
अनीता शर्मा

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

मेरी कुछ फालतु बातें...

कई बार भावनाओं का तेज प्रवाह शब्दों का कंगलापन बन कर सामने आता है और उसमें अगर वक्त ऊब की काई भी लगा दे, तो यह कंगलापन और भी बढ़ जाता है, इसलिए ही शायद समझ नहीं पा रही कि क्या लिखूं. फिर भी जो बन पड़ा ऊटपटांग लिख रही हूं, क्योंकि अगर मन में भरे इस दर्द को हल्का न किया तो निश्चित ही पागल हो जाऊंगी...
पहले सोचा था कि दोस्तों से इस बात को बांट लूं, लेकिन किसी के पास इन बेतुकी बातों के लिए भला समय कहां...
करवाचैथ बीत गया, लेकिन मेरे लिए तो मानों सांप की कैंचुली सा अभी भी बचा हुआ है.
दो दिन से गला है कि उम्मीद लगाए बैठा है कि तुम आओगे और उसे पानी की कुछ बूंदें दान कर जाओगे. इस की तमन्ना पूरी तो मैं भी कर सकती हूं, लेकिन क्या करूं मैं तुम जैसी नहीं हूं न कि अपनी ही कही बात से पलट जाऊं, मजबूरियों का नाम लेकर.
लगा था कि तुम आ जाओगे, पर क्या जानती थी कि एक बार फिर मैं गलत साबित हो जाऊंगी...
पर मैं हमेशा की ही तरह इस बार भी तुम्हें समझ न पाई. हर बार तुम मेरी उम्मीद से ज्यादा दर्द दे जाते हो. शायद इसलिए भी क्योंकि मैं हर बार तुमसे नेह भरे आचरण की उम्मीद कर बैठती हूं या फिर शायद तुम्हारी दया की...
बिना किसी मतलब या फायदे के तुम्हारा मुझ तक आना...
सच, यह तुम्हारा मुझ पर एक और अहसान होगा या एक और बार की गई दया...
इसलिए भले ही मैं प्यासी मर जाऊं, लेकिन इस बार मुझ दया मत करना। क्योंकि मैं फिर से इसे तुम्हारा प्यार समझ बैठूंगी...
और एक बार फिर तुम्हें किसी पर दया करने की कीमत चुकानी पड़ेगी.

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

बगैर शीर्षक

रोज सुबह नहाधोकर पूजा करना, माथे के साथ ही थोड़ा सा सिंदूर अपनी मांग में बालों की ओट में ही कहीं लगा लेना. कुछ ऐसी ही चोरों जैसी शुरूआत होती है दिन की. यह सोचकर बहुत सकूं आता है कि जिसे समय से न छीन सकी कल्पना लोक में उस निर्मोही पर मेरा वश चलता है.
फिर भी भूल से जब लौट कर आती हूं अपने अस्तित्व की ओर, तो नजारा कुछ और ही होता है. मेरी नजर में सिंदूर महज लाल रेत है, जिसे हथियार बना कर पुरूष महिलाओं पर राज करना चाहते हैं. यह सोचकर ही अजीब लगता है कि एक मंगलसूत्र पहनने के लिए मेरे सर पर किसी पुरूष का हाथ होना जरूरी है. अरे भई, मैं नहीं मानती इन बातों को.
अगर मुझे मंगलसुत्र पसंद है, तो मैं बिना शादी के भी उसे पहन सकती हूं, क्यों किसी मर्द का मुंह तकूं....

फिर सहसा अपने भीतर ही कहीं पनप रहे विरोधाभास से डर जाती हूं. अगर मैं ऐसा ही सोचती हूं, तो क्यों मैंने खुद को इस लाल रेत के बंधन में बांध लिया है, क्यों उसे मांग मंे सजाने के बाद किसी की धुंधली सी सूरत मेरे मन को एक नर्म अहसास दे जाती है. क्यों मैं महज लाल रेत लगाने से यह सोच उठती हूं कि वह मेरा हुआ और मैं उस की. क्या उसे पाने के लिए एक यही रास्ता है मेरे सामने.

मेरे नारीवादी विचार उस समय अपने चरम पर होते हैं, जब मैं उस के बारे में नहीं सोचती। जब कभी घर पर मेरी शादी की बात चलती है, तो मैं जरा भी लचीलापन नहीं अपनाना चाहती. साफ कहती हूं कि शादी के बाद मैं कोई मंगलसूत्र या सिंदूर नहीं लगाउंगी, अपनी नौकरी नहीं छोडूंगी, रहूंगी तो वैसे जैसे मैं चाहती हूं.

हाल ही में एक रिश्ता आया, जिस में लड़का आर्मी में अच्छे पद पर था, लेकिन उन की मांग थी कि मैं अपनी नौकरी छोड़ कर लड़के के साथ रहूं. पैसे तो वो अच्छेे कमाता ही है, सो मुझे नौकरी की क्या जरूरत. मेरा एक ही जवाब था जितने पैसे लड़का कमाता है, मैं भी दिनरात एक करके उस से दोगुने कमा कर उस के हाथ में रखुंगी, बशर्ते वो अपनी नौकरी छोड़ कर घर संभाले. बस होना क्या था रिश्ता होते होते टूट गया. घर वालों के लिए यह एक सदमे से कम न था, लेकिन मेरे लिए तो मानो, विजयदश्मी का त्योहार हो.
खैर परेशानी मुझे कम से कम अपने इस व्यवहार या विचारो से तो कतई नहीं है, परेशान करने वाली वजह दूसरी है, जो मुझे कभी अपने होने का अहसास नहीं होने देती। उपर मैंने जितनी भी बातें कहीं, सभी उस समय धरी की धरी रह जाती हैं, जब बात उस शख्स की चलती है. न जाने मेरा आत्मसम्मान, मेरे विचार, मेरा अस्तित्व उस समय कहां गहरे गोते मारने चला जाता है। एक उसे पाने के लिए मैं सब कुछ कर सकती हूं, अपनी नौकरी छोड़ कर उस के परिवार की सेवा करना हो या मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहन दो गज का घूंघट निकाल घर में चुपचाप बैठना हो. मुझे ये सारी बातें उस समय सही लगने लगती हैं, क्यों, तो इस का जवाब मेरे पास भी नहीं है.

समझ नहीं पा रही कि मैं हकीकत में हूं क्या? वो पहली अनिता जो अपने अस्तित्व की सार्थकता के लिए किसी से भी भिड़ सकती है या किसी के लिए दीवानी एक बावरी सी लड़की जो सब कुछ भूला चुकी है....
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