tag:blogger.com,1999:blog-2890535631839216725.post4853355908546665426..comments2023-09-13T04:32:20.695-07:00Comments on बातें जो छूट गईं...: मेरे गुन-ओगुन गिनों न गोपीनाथअनिता शर्मा (Anita Sharma)http://www.blogger.com/profile/16644730124179484455noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2890535631839216725.post-92030032536109392032009-04-13T07:43:00.000-07:002009-04-13T07:43:00.000-07:00एक आस लिए जीती हूं, एक प्यास जिसे पीती हूं, न जान...एक आस लिए जीती हूं, एक प्यास जिसे पीती हूं, न जाने क्यूं, मन में एक विश्वास लिए हूं, फिर भी रीती हूं।..... what a introduction about you ....deepest thinking...<BR/>myself....<BR/>सूखे पत्ते कहाँ गए ? कुछ ख़बर नही । बचपन में बकरियों को खिलाते थे । जिनपर कभी लेटा करते थे । बागों से जिन्हें चुना करते थे ।<BR/>अब कहाँ गए होंगे ? कुछ समझ नही आता । बेचारे !<BR/>क्या सूखे पत्तों की भाँती हम भी एक दिन सुख जायेगे ? क्या हमारा भी वही हाल होगा ? क्या तब हमें कोई याद करेगा ?<BR/>कुछ समझ नही आता ।mark raihttps://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2890535631839216725.post-84682895020398967072009-04-11T04:53:00.000-07:002009-04-11T04:53:00.000-07:00बहुत अच्छा लगा भारत जी का लेख.बिलकुल प्रासंगिक है....बहुत अच्छा लगा भारत जी का लेख.<BR/>बिलकुल प्रासंगिक है. अब तो सड़क पर निकलते हुए भी डर लगता है.Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.com