कई बार भावनाओं का तेज प्रवाह शब्दों का कंगलापन बन कर सामने आता है और उसमें अगर वक्त ऊब की काई भी लगा दे, तो यह कंगलापन और भी बढ़ जाता है, इसलिए ही शायद समझ नहीं पा रही कि क्या लिखूं. फिर भी जो बन पड़ा ऊटपटांग लिख रही हूं, क्योंकि अगर मन में भरे इस दर्द को हल्का न किया तो निश्चित ही पागल हो जाऊंगी...
पहले सोचा था कि दोस्तों से इस बात को बांट लूं, लेकिन किसी के पास इन बेतुकी बातों के लिए भला समय कहां...
करवाचैथ बीत गया, लेकिन मेरे लिए तो मानों सांप की कैंचुली सा अभी भी बचा हुआ है.
दो दिन से गला है कि उम्मीद लगाए बैठा है कि तुम आओगे और उसे पानी की कुछ बूंदें दान कर जाओगे. इस की तमन्ना पूरी तो मैं भी कर सकती हूं, लेकिन क्या करूं मैं तुम जैसी नहीं हूं न कि अपनी ही कही बात से पलट जाऊं, मजबूरियों का नाम लेकर.
लगा था कि तुम आ जाओगे, पर क्या जानती थी कि एक बार फिर मैं गलत साबित हो जाऊंगी...
पर मैं हमेशा की ही तरह इस बार भी तुम्हें समझ न पाई. हर बार तुम मेरी उम्मीद से ज्यादा दर्द दे जाते हो. शायद इसलिए भी क्योंकि मैं हर बार तुमसे नेह भरे आचरण की उम्मीद कर बैठती हूं या फिर शायद तुम्हारी दया की...
बिना किसी मतलब या फायदे के तुम्हारा मुझ तक आना...
सच, यह तुम्हारा मुझ पर एक और अहसान होगा या एक और बार की गई दया...
इसलिए भले ही मैं प्यासी मर जाऊं, लेकिन इस बार मुझ दया मत करना। क्योंकि मैं फिर से इसे तुम्हारा प्यार समझ बैठूंगी...
और एक बार फिर तुम्हें किसी पर दया करने की कीमत चुकानी पड़ेगी.
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
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इसे आप फालतू बातें ना कहें...ये बहुत काम की बातें हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
बाते कभी फ़ालतू नही होती. बातो से ही बाते निकलती है. और आपने देखिये कितनी खूबसूरत बाते की है.
जवाब देंहटाएंbehad bhavuk baatein hain aapki
जवाब देंहटाएंगहरे तक उतर के लिखी गयी है ये पोस्ट.. भगवान ने इन औरतो को क्यों इतना संवेदनशील बनाया.. ? सिर्फ दुःख पाने के लिए ?
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई लिए हुए हैं ये...एहसास में लिपटी बातें...
जवाब देंहटाएंनहीं समझेंगे ....जितना जोर लगा लीजिये...!!!
जवाब देंहटाएंबड़ी अच्छी अच्छी फ़ालतू बातें हैं जी आपकी। ऐसी वाली फ़ालतू बातें तो आपको और भी करना चाहिए हा हा। गहरे अहसास।
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