
पीड़ामयी यह बयार,
जो बुनती रहती है,
विपुल क्रन्दन अपार,
अनायास ही दे जाती है
अनचाहे मुझको
अश्रु उत्स उधार,
प्रणय का तुम्हारा चुंबन
प्रणय का तुम्हारा चुंबन
मेरी स्मृति बराए जूं आहार,
हाय, नेस्ती छाई है
बन जीवन विहास.
उसकी वाय में घुलना तुम्हारा
ए मेरे अवरुद्ध श्वास,
आज भी दे रहा है मुझे
वही मिश्रित सा अहसास।
हाय, नेस्ती छाई है
बन जीवन विहास.
उसकी वाय में घुलना तुम्हारा
ए मेरे अवरुद्ध श्वास,
आज भी दे रहा है मुझे
वही मिश्रित सा अहसास।
तुम ही कहो अब
प्रयण का वह पल,
कैसे भूलूं मैं
प्रयण का वह पल,
कैसे भूलूं मैं
बन पलाश.
देखो तो,
तुम्हारा वह भोगी स्पर्श,
नित करता है मुझसे अट्टहास।
देखो तो,
तुम्हारा वह भोगी स्पर्श,
नित करता है मुझसे अट्टहास।
अनीता शर्मा
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंतुम ही कहो अब
जवाब देंहटाएंप्रयण का वह पल,
कैसे भूलूं मैं
वाकई कुछ लम्हे भूलने के लिये नही होते
बहुत सुन्दर रचना
सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंहर शब्द प्रणय-संबंधों और उससे उपजी मीठी मीठी पीड़ा को ब्यां कर रहा है ।
kuchh khas nahi hai...
जवाब देंहटाएंmehnat karo
auraten prashansha ki bhukhi hoti hai...
purush chaplushi karne me pichhe nahi rahte..
tumhare post or uspe chhape comment ko dekh ke ye purani bat fir se proof hoti hai..
तुम ही कहो अब
जवाब देंहटाएंप्रयण का वह पल,
कैसे भूलूं मैं
बन पलाश.
BEHATAR LEKHAN
कैसे भूलूं मैं
जवाब देंहटाएंवाकई कुछ लम्हे भूलने के लिये नही होते
बहुत सुन्दर रचना
संवेदनाओ से पूर्ण, बेहतरीन।
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