सोमवार, 6 अप्रैल 2009

कंप्यूटर से मुझे बचाओ

कंप्यूटर... ओह, यह शब्द सुनते ही मैं झल्ला जाती हूं। एक ऐसा नाम, जो मेरी जिंदगी में खासी अहमियम रखता है, लेकिन फिर भी मैं इस नाम से चिढ़ती हूं. जनाब, अब ये न पूछ बैठिएगा कि इतनी अच्छी चीज से मैं भला क्यों चिढ़ती हूं ? क्योंकि मैं इस का कोई कारगर जवाब न बना सकूंगी.
मेरे कंप्यूटर से चिढ़ने की कई वजहें हैं, जैसे जब दिनभर की थकान के बाद रात को बिस्तर पर मैं अपने दिन का कच्चाचिट्ठा जांचने की तैयारी करती हूं, तभी अचानक किसी पोर्टल का एक ब्लैंक पेज मेरी आंखों के सामने खुल जाता है, जहां एक छोटे से बक्से में कर्सल लिपलिपाता है मानो लगातार मुझे कुछ टाइप करने को कह रहा हो. मैं घबरा जाती हूं... अब क्या करूं? सांसे तेज होती ही हैं कि सहसा मुझे याद आता है, ‘अरे, मुझे अब इस बक्से में कुछ लिखना पडे़गा, तभी तो मेरा दिमाग उस बात को सर्च कर के दिखा पाएगा। बिना किसी यूआरएल के कोई फाइल दिमाग में सर्च कहां होती है...‘इस पर मैं झल्ला जाती हूं, पर करूं भी तो क्या? अब दिमाग है कि बिना कोई शब्द या यूआरएल डाले कोई रिस्पांस ही नहीं देता.
इधर कुछ दिनों से मुझे एक नई परेशानी ने घेर लिया है। बिना शब्द डाले अगर गलती से कुछ ऐसावैसा सोचने लगती हूं, तो यकायक एक नई विंडो मेरी आंखों के सामन खुल जाती है, जिस पर लिखा होता है ‘दि पेज केन नाॅट बी ओपन‘ और मैं यह सोच कर कि मेरा दिमागी संतुलन डगमगा गया है, सोने का मन बना लेती हूं। पर मेरी ऐसी किस्मत कहां कि यह हाइटेक दिमाग मुझे निंद्रा सुख लेने की अनुमति दे दे. जनाब, पलकें बंद होती नहीं कि एक और विडो खुलती है, जिस में मेरे दिमाग में कई भयंकर वायरस होने के संकेत दिखाई देने लगते हैं. मैं सकपका जाती हूं, क्या करूं, क्या न करूं... इतने में वह विंडो अपनेआप बंद हो जाती है.
अब और क्या कहूं आप से... कल तो गलती से मैं अपने उस दोस्त के बारे में सोचने लगी जिस से हाल ही में मेरी लड़ाई हुई थी और मंै ने उसे बहुत भलाबुरा कहा था। अब जरा देखिए तो यह कंप्यूटर यहां नहीं आता. अरे, आए भी क्यों यहां मुझे उस की जरूरत जो है. इस की इन्हीं बातों पर मैं गुस्से से भर जाती हूं. ये मेरे लिए इतना भर नहीं कर सकता कि एक पल के लिए मेरे हाथों में कन्ट्रोल जेड का बटन दे दे ताकि मैं अपनी भूल सुधार सकूं.
कितनी बार सोचती हूं कि इस मतलबी कंप्यूटर को छोड़ दूं, पर यह कम्बख्त कहां मुझे छोड़ता है। दिमाग पर इस कदर हावी है कि किसी का चेहरा देख कर सोचती हूं इसे तो फोटोशाप में डाल कर थोड़ा सा कर्व कर देना चाहिए, बेचारा काले से गोरा हो जाएगा. कभी अपने चेहरे पर उभरा कोई दाना ही दिख जाए, तो दाने के भीतर का पस मन में उतर आता है कि काश, यह दाना भी फोटोशाप में जा पाता और मैं इस का सत्यानाश कर सकती. पर मन मार कर रह जाती हूं और आईने को दूर पटक देती हूं.
जब कभी कोई अजीब बातें करता है, तो मेरा मन अनायास ही कह उठता है, ‘हे भगवान, इस की प्रोग्रामिंग में इतनी गड़बड़ क्यों कर दी तुम ने।‘ इतना ही नहीं दिमाग से कोई बाद निकल जाती है, तो मैं पलभर के लिए भी दिमाग पर जोर नहीं देती. फट से सर्च फाइल का आप्शन पकड़ लेती हूं, लेकिन एक परेशानी है कि अगर दिमाग से कोई काम की फाइल डिलीेट हो जाए, तो उसका फोल्डर मुझे दोबारा नहीं मिल पाता, क्योंकि मेरे पास कोई रिसाइकिल बिन नहीं है न.
कागजकलम नाम से ही अजीब लगने लगे हैं। यही नहीं, हाथ तो कलम पकड़ना ही भूल गए हैं. सोचती हूं, अपने डिगरी भंडार में एकाध डिगरी और जोड़ लूं, पर कलम की शक्ल देखते ही जी मिचलाने लगता है और उंगलियां कीबोर्ड की दुआ मांगने लगती हैं.
अब क्या करूं ? कहां जाऊं ? यह सोचती हूं, तो फिर से एक विंडो खुल जाती है कीवर्ड की डिमांड करते हुए। इसी के साथ में अपने दिमाग का कंप्यूटर शट डाउन करने से पहले आंखे बंद कर के दिमाग में आ चुके एरर को हटाने के लिए बिना किसी एंटी वायरस के सतत प्रयासों में लग जाती हूं. इसलिए आने वाले हर नए सिस्टम से कहना चाहती हूं कि अपने दिमाग को इस कप्ंयूटर नाम के बडे़ वायरस से बचा कर रखें. यह एक ऐसा वायरस है, जिसे कोई एंटी वायरस हील नहीं कर सकता और दिमाग की हार्ड डिस्क के साथसाथ दिल का मदर बोर्ड भी खराब हो जाता है।
अनिता शर्मा

9 टिप्‍पणियां:

  1. अर्र्र्र्र्र्र्र्र र्म्म्र्र्म्र्म्म्म्म्म क्ल्ल्क्पश्त्प्प्प्त्त्त .....

    दिमाग चक्कर खा गया :) :)

    होता है -होता है ...कभी कभी ऐसा भी होता है ...
    आये दिन मुझे भी होता रहता है ...आखिर हम दोनों इस मामले में एक हों शायद

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. यदि आपके बिना कुछ किये अपने आप "पोर्टल" के पन्ने खुलते जायें तो समझिये कि अभिगणकविषाणु (computer virus) घुस गया है! कुछ मुफ्त अभिगणकविषाणुहर्ता (antivirus) डालें तो काम चले।

    बहरहाल कंप्यूटर चीज ही ऐसी है जो कभी-कभी अच्छे-अच्छों को धोखा दे जाती है। बस उसे नियमित इस्तेमाल करती रहें, वो आपका दोस्त बन जायेगा। कुछ हिंदी के अच्छे ब्लाग हैं कंप्यूटर की जानकारी से भरे। उनमें टिप्स हिंदी और प्रथम मेरे पसंदीदा हैं।

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  3. जी बहुत अच्छा घुमाया......

    ये समस्या आपके अकेले के साथ नहीं है......
    इस पीड़ित वर्ग में हम भी आपके साथ है........

    आभार

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  4. सुकून से जीने की सूरत यहाँ भी ना हुई

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  5. computer ko achha discribe kiya....sundar likhte raho..


    Jai Ho Mangalmay HO

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  6. sach hi likha hai . ye computer ab ek aisi zaroorat ban chukaa hai ki aap na chahte hue bhi is se peechha nahi chhudaa sakte . sundar abhivayakti !!

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