बुधवार, 15 जुलाई 2009

एक पत्रकार की कहानी

हाल ही में हमारे एक और पत्रकार भाई की संदिग्ध हालातों में हत्या की खबर मिली. इन दिनों इस तरह की हत्याओं के मामले कुछ ज्यादा ही सामने आ रहे हैं. शायद इसी के चलते हमारे बास ने हमें हाल ही में एक दमदार स्टोरी करने से मना कर दिया. हमारी तैयारी पूरी थी कुछ लोगों की पोल खोलने की, लेकिन जैसे ही बास ने मना किया हमारे थोथे मीडिया जगत की ही पोल खुल गई कि खुद को निडर और कलम का सच्चा सिपाही कहने वाले हमारे मीडिया सैनिक कितने डरपोक हैं. पर जनाब हम नहीं हैं डरपोक. हम तो अपनी स्टोरी को कर के ही मानेगें.
पर कैसे? पैसे वैसे तो हैं नहीं और बास ने स्टोरी के लिए मना कर दिया तो अब कन्वेंस भी नहीं मिलेगा. छोड़ो भी यार अब कुछ तो तहलका मचाना ही चाहिए न. जब स्टोरी कवर कर लेंगें और वह हिट हो जाएगी, तो बास खुश होकर कंवेंस भी दिला ही देंगे. अब तो हम बास को बिना बताए स्टोरी करने की पूरी फिराक बना चुके हैं.
एक बार यह स्टोरी हो गई, तो मीडिया जगत में अनिता शर्मा का नाम चमक जाएगा. और अगर जान जाती है, तो जाए... साला जी कर भी कौन से झंड़े गाड़ देंगे हम. कम से कम मर कर कुछ दिन टीवी पर तो चिपके रहेंगे.... वैसे भी इस मनहूस इलैक्ट्रानिक मीडिया वालों को जाने हमारी सूरत से क्या परहेज है... कितना ही अच्छा लिख लो हमें स्क्रीन पर नहीं दिखाते. जनाब कहते हैँ कि हमारी आवाज पैनी है वीओ अच्छा नहीं जाएगा, स्क्रीन पर चेहरे के दाग दिख रहे हैं, चेहरे पर एक्प्रेशन नहीं हैं वगैरह वगैरह बहाने बना कर हमे उस स्क्रीन नामक सोने की चिड़ी से दूर ही बनाए रखते हैं.
अब आए दिन हमारे पत्रकार मित्रों की हत्या की खबरें आती रहती हैं. और जो स्टोरी हम करने जा रहे हैं उस में भी मौत का कोई कम डर तो नहीं. इसलिए ही हम स्टोरी करने से पहले ही एक सुंदर सी फोटो खिचवाएंगें और उसे हर मीडिया हाउस में भेजेंगें, ब्लाग पर लगाएंगे, फेसबुक, आरकुट हर सोशल नेटवर्क साइट पर उसे चिपकाएंगे. अरे भई अगर मर गए, तो मीडिया वाले हमारे दोस्तों को फोटो ठूंठने में मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी न और कम मशक्कत वाली स्टोरी को करना हमारे भाई लोगों को ज्यादा ही पसंद है. और कहीं किसी ने हमारी कोई गंदी सी फोटो दिखा दी तो, नहीं नहीं... हम अपनी सुंदर से फोटो की सरल उपलब्धता का पूरा जुगाड़ कर के ही स्टोरी कवर करने जाएंगे. भई जिंदा रहे तो हीरो मर गए तो हीरो. यानी चट भी मेरी पट भी मेरी वो भी झटपट.
जब हमने मीडिया के पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था, तो क्या जानते थे कि यहां इतनी भुखमरी है. हमें तो टीवी दिख रहा था और दिख रही थी उस पर हमारी सुंदर सी सूरत. पर जनाब ग्लैमर के चक्कर में मारे गए हम. वरना यहां पाठ्यक्रम खत्म होने के एक साल बाद भी महज 10 हजार ही कमा रहे हैं कहीं और होते, तो 40-30 पर हाथ पसारे ठाठ से रहते. लेकिन क्या करें मति जो मारी गई थी हमारी, जो डेढ़ लाख का कोर्स किया महज 10 हजार की नौकरी के लिए. हाय रे टीवी पर भी नहीं दिखे.
खैर, अब और नहीं. यह स्टोरी हो गई, तो तनख्वाह और रुतबा दोनों ही बढ़ेंगे. मर गए तो भी मीडिया के इतिहास में अमर हो जाएंगे. हम साबित कर देंगे कि हम डरपोक पत्रकार नहीं. हर समाचार पत्र, चैनल और रेडिया स्टेशन पर हम ही छाए होंगे. हमारी मिसाल दी जाएगी. मीडिया पर लिखी जाने वाली हर किताब में हमारा जिक्र होगा और हमें महान और निडऱ पत्रकारों की लिस्ट में शामिल किया जाएगा.
पर डर है, कहीं हमारी मौत को कवरेज ही न मिली तो? या हमारी स्टोरी को सराहा न गया तो? अरे धुत्त मिलेगी कैसे नहीं, हमारी स्टोरी धांसू जो ठहरी. आखिर काल गल्र्स के धंधे पर है, सैक्स से जुड़ी है, हिट तो होगी ही. पर आए दिन ऐसी खबरे छपती रहती हैं, हमारे पास भला क्या नया होगा?
अरे यार नया नहीं है तो न सही. हम खुद ही कुछ ऐसा जोड़ देगें जो स्टोरी को दमदार बना दे. हमारी बात पर सब यकीन करेंगें, आखिर हम पत्रकार जो ठहरे. अब सच्चे हों या झूठे पत्रकार तो पत्रकार होता है. हम ही क्या हमारे दोस्त भी ऐसे ही करते हैं.
हम खयालों में ही डूबे थे कि यकायक फोन बज उठा. अरे हमारे बास का फोन था. हमने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से सरपट सी आवाज कोनों में घुस गई ''कहां हो तुम? तुम ने जो स्टोरी परसों फाइल की थी उस पर केस हो गया है. भावे जी का कहना है कि तुमने उन से बात किए बिना ही उन्हें कोट किया है. आफिस पहुंचों एडिटर जी गुस्से में हैं और तुम से मिलना चाहते हैंÓÓ
हमें लगा कि हमारी स्टोरी कवर करने से पहले ही किसी ने कह दिया हो 'पैक अपÓ। हम मुंह लटका कर स्टोरी भूल भाल कर खुद को बचाने के उपाय ठूंठने की जुगत में लग गए.

( अनीता शर्मा )

4 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ साहस वाहस नहीं, न कोई स्टोरी। सब बिजनेस है... और यह समझना बहुत जरूरी है कि किस स्टोरी से संस्थान को फायदा होगा। यही खबर करने की रणनीति होनी चाहिए... सफलता निश्चित मिलेगी।

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  2. अरे यार नया नहीं है तो न सही. हम खुद ही कुछ ऐसा जोड़ देगें जो स्टोरी को दमदार बना दे. हमारी बात पर सब यकीन करेंगें, आखिर हम पत्रकार जो ठहरे.

    aji aise hi jod jod kar ab tak ham logon ne padha?

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  3. चेहरा तो अच्छा खासा खूबसूरत है ...वो खामखाँ ये बहाना मारते हैं
    और मीडिया में सुना है वही अमर होता है जो नामी गिरामी हो :) :)

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  4. ज्यादा रुपया खर्च कर कम की नौकरी ये तो हरेक जगह का रोना है..

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